Oman cricket team illuminated with "Suraj" of Punjab Jalandhar
रजनीश शर्मा,जालंधरः पंजाब के जालंधर शहर के कोटराम दासपुरा इलाके में गुमनाम सी जिंदगी जी रहे केहर सिंह ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस बेटे का नाम उसने सूरज रखा था वह वास्तव में बड़ा होकर उसकी अंधेरी जिंदगी में सूरज बन कर उजाला भर देगा । चाय की जूठन धोने को अब तक अपना मुकद्दर समझ रहे केहर सिंह जिंदगी की जद्दोजहद के बीच बेटे सूरज के क्रिकेट शौक़ को देखकर अपनी गरीबी पर रो देते थे । उनका मानना था कि क्रिकेट अमीर लोगों का खेल है । उनके जैसे गरीब परिवारों का खेल तो हर दिन मुफ़लिसी से दो दो हाथ करना है । शुरुआत में यही सोच बेटे सूरज के लिए भी थी पर उन्हें क्या पता था कि उनके अपने सूरज की किरणें ओमान जैसे देश को रौशनी से भर देंगी । आखिरकार गरीबी पर कड़ी मेहनत की जीत हुई और जालंधर के लाल ने अपने खेल पराक्रम के बल पर ओमान की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में अपनी मजबूत जगह बना ली है । सूरज के पिता केहर सिंह को विश्वास है कि उनका बेटा अपनी खेल प्रतिभा से एक दिन भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा जरूर बनेगा । सूरज का परिवार जालंधर के कोट राम दासपूरा में किराए के मकान में एक कमरे रहता है । घर के मुख्य कमरे के टूटे प्लास्टर और दीवारों पर लगी सीलन सूरज के माली हालत को साफ तौर पर बयां कर रहे हैं । अलमारी में करीने से रखी छोटी बड़ी ट्राफियां और कप सूरज के अब तक के क्रिकेट के सफर की गवाही दे रही हैं ।ट्राफियों की संख्या बता रही है कि घर में क्रिकेट का कोई पौधा तेज़ी से अपने विकास की कहानी सुना रहा है । सुरज के पिता केहर सिंह नेपाल से 1976 में पंजाब के जालंधर शहर में आकर बसे थे। सूरज के पिता अब तक एक फैक्ट्री के बाहर चाय की रेहड़ी लगाते थे, और इसी छोटी सी आमदनी के बदौलत वह घर की जरूरतों के साथ ही सूरज के सपनो को पूरा करने के लिए जूझ रहे थे । सूरज जैसे जैसे बड़ा हुआ क्रिकेट को लेकर उसकी दीवानगी बढ़ती ही गई । .यह क्रिकेट का ही जूनून था कि सूरज अपने घर से करीब 15 किलोमीटर दूर साईकिल से नियमित क्रिकेट खेलने जाता था । क्रिकेट को सीखने शौक और इसके लिए कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि आज सूरज का चयन ओमान की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में हुआ है । आपको बताते चलें कि ओमान की टीम इस बार क्वालीफाई होने के बाद सितम्बर में होने वाली छः देशो के एशिया कप में खेलेगी । उम्मीद है कि सूरज एशिया कप में अपना जलवा बिखेरेगा । सुरज के पिता बताते है कि सुरज के मामा ने सुरज की बहुत मदद की है। सुरज के पिता कहते है कि उनकी इच्छा थी कि सुरज इंडिया के लिए क्रिकेट खेले लेकिन यहां पर उसकी मदद करने वाला कोई नही था। खैहर कुछ भी हो सुरज का भाई सन्नी व माँ शकुंतला देवी आज बहुत खुश है कि उनका बेटा ओमान देश की अंर्तराष्ट्रीय टीम के लिए खेल रहा है।
संसाधनों के आभाव में भी मिली सफलता
बतौर एक पेशेवर खिलाड़ी क्रिकेट में संसाधनों का होना बहुत अहम होता है । उच्च कोटि के खेल सामानों के बिना प्रोफ़ेशनल क्रिकेटर बनना आसान नहीं है । अनुभवी कोच , एक्सरसाइज की आधुनिक मशीनें , उच्च कोटि के बैट व गेंद से लेकर मशीन द्वारा निर्धारित गति से फेंकी गई गेंदों पर घंटो प्रैक्टिस करना एक प्रशिक्षु खिलाड़ी के खेल को तेज़ी से निखारता है । खेल के ऐसे आदर्श माहौल के लिए खिलाड़ी को खासी रकम खर्च करनी पड़ती है । सूरज के खेल संघर्ष को करीब से देखने वाले बताते हैं कि शुरुआती ट्रेनिंग के दौरान सूरज के पास संसाधनों का अभाव साफ दिखता था । परंतु जुनून की हद तक नियमित क्रिकेट खेलते रहने से सीमित संसाधनों के बाद भी उसका खेल निरंतर निखरता गया । ओमान के घरेलू क्रिकेट में कदम रखने के बाद ही उसे क्रिकेट का आदर्श स्थिति मिल सकी । निम्न आय वर्ग के खिलाड़ियों के लिए सूरज का खेल संघर्ष किसी प्रेरणा से कम नहीं है ।