Notice: The Court of 5 judges will hearing on the petition against CJI today
नेशनल न्यूज डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग नोटिस खारिज करने के राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को रद्द करने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को संविधान पीठ सुनवाई करेगी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने मास्टर ऑफ रोस्टर होने के नाते देर शाम पीठ और उसके पांच जजों का चयन कर दिया। इसमें न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी , न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे , न्यायमूर्ति एन.वी. रमण , न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की पांच सदस्यीय संविधान पीठ कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा की याचिका पर सुनवाई करेंगे। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्त प्रशांत भूषण ने सोमवीर को दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया था। इसमें वो चार वरिष्ठ जज शामिल नहीं हैं, जिन्होंने 12 जनवरी को प्रेस कांफ्रेंस कर चीफ जस्टिस मिश्रा पर अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। सोमवार सुबह इस याचिका का उल्लेख जस्टिस जे चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष किया गया था। इस पर, पीठ ने मंगलवार को कोई फैसला लेने की बात कही थी। लेकिन इससे पहले कि वह निर्णय ले पाते, सुनवाई के संविधान पीठ गठित कर दी गई। संविधान पीठ में वरिष्ठता क्रम में छह से दसवें नंबर के न्यायाधीशों को शामिल किया गया है। इस पीठ की अध्यक्ष वरिष्ठता में छठवें नंबर के जस्टिस एके सीकरी करेंगे। जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एनवी रमन, जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एके गोयल पीठ के अन्य जज हैं। कांग्रेस के दो राज्यसभा सांसदों प्रताप सिंह बाजवा और अमी याज्ञनिक ने यह याचिका दायर की है।सिब्बल की दलील, प्रावधानों की तत्काल व्याख्या करने की दरकार इससे पहले, जस्टिस चेलमेश्वर की पीठ के समक्ष पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए तारीख और पीठ तय करने की अपील की। उन्होंने कहा, जिस तरीके से महाभियोग नोटिस को रद्द किया गया है, उसमें गंभीर संवैधानिक मुद्दे जुड़ गए हैं। इसमें संवैधानिक प्रावधानों की तत्काल व्याख्या करने की दरकार है। यह फैसला राजनीति से प्रेरित, मनमाना और गैरकानूनी है, इसे खारिज किया जाना चाहिए। सीजेआई पर एक आरोप यह भी है कि वह सत्तारूढ़ दल से संबंधित संवेदनशील मामलों को कुछ खास पीठों के पास भेजते हैं, जिससे अपेक्षित नतीजे निकल सकें।