` ज़कात इंसानियत को आबाद करने का जरिया है -- मौलाना सिराज अहमद मदनी

ज़कात इंसानियत को आबाद करने का जरिया है -- मौलाना सिराज अहमद मदनी

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Zakat is the means of populating humanity - Maulana Siraj Ahmad Madani


अशफांक खां,बहराइचः
मदरसा सुल्तानुल उलूम सोसायटी व मदरसा आमिना लिलबनात मोहल्ला सालार गंज के संस्थापक एवं प्रबंधक मौलाना सिराज अहमद मदनी ने कहा कि ज़कात इस्लाम के बुनियादी रुकनो मे से एक रुकन है जो सन दो हिजरी में फ़र्ज़ हुई, क़ुरआन ए करीम मे (72) जगहो पर ज़कात देने का हुक्म दिया गया है जो ज़कात के महत्व को बताता है, ज़कात ईमान और तक़वा की अलामत है, ज़कात अदा करने वाला जन्नतुल फ़िर्दौस का वारिस है, ज़कात अदा करने से माल पाक  हो जाता है और महफ़ूज़ रहता है, ज़कात अदा करने से रूह की सफ़ाई होती है और बुरे अख्लाक़ से नजात मिलती है, ज़कात अदा करने से माल बढ़ता है और माल आफ़तो से महफ़ूज़ रहता है, ज़कात से समाज के गरीब लोगों की कफ़ालत होती है, और समाज के हर शख्स को शरीफ़ाना ज़िन्दगी मिलती है, ज़कात अदा करने से दौलत कुछ मालदार लोगों के हाथो में रहने के बजाए समाज के सभी लोगों में गर्दिश करती है, ज़कात देने से मालदार और फ़क़ीर के बीच मोहब्बत होती है और समाज चोरी और डकैती जैसी बीमारियो से पाक हो जाता है, ज़कात से समाज में गरीबी खत्म होती है, ज़कात कोई टैक्स नहीं बल्कि इस मे अल्लाह पाक की प्रसन्नता की भावना होती है, अल्लाह पाक के रास्ते में एक रुपया खर्च करने का सवाब सात सौ रुपये खर्च करने के बराबर है, ज़कात इंसानियत को आबाद करने का ज़रिया है । हर ज़माने और हर समाज में लोगों के ज़िन्दगी गुज़ारने का स्तर एक तरह नहीं रहा है, कोई अमीर है तो कोई गरीब, कोई खुशहाल है तो कोई तंगदस्त,हर ज़माने में दोनों तरह के लोग पाए गए हैं यह एक स्वभाविक और क़ुदरती निज़ाम है ताकि एक वर्ग दूसरे वर्ग के काम आसके, हर एक की ज़रूरत दूसरे से पूरी होती रहे, समाज के कमज़ोर वर्ग के साथ कैसा मामला होना चाहिए यह बात भी खुद खालिक़ ए कायनात ने बता दी है और इस के लिए इस्लाम मे ज़कात का निज़ाम क़ायम किया गया है ।मौलाना मदनी ने कहा है कि जब इन्सानो ने कमज़ोर वर्ग पर अपनी सीमित अक़ल से सोचना शुरू किया तो रूस ने सोशलिज़्म के नाम से एक नज़रिया हुआ कि सभी इन्सानो के ज़िन्दगी गुज़ारने का स्तर एक कर दिया जाए, कि सारी पैदावार पर पूरी जनता की संयुक्त मिल्कियत हो और सब को बराबर का हिस्सा मिले, लेकिन कुछ ही सालो में यह निज़ाम अपनी मौत मर गया और आज सोशलिज़्म का नाम व निशान भी बाक़ी नहीं है, सोशलिज़्म के ज़माने के बाद दूसरा निज़ाम आया जिस का नाम दुनिया ने मालदारो का निज़ाम कैटलिज़्म (catalism) रखा इस निज़ाम ने मालदारो को कुल मालिक बना दिया जिस मे दूसरो को ज़र्रा बराबर भी हक़ नहीं रखा गया और आज यही निज़ाम पूरी दुनिया में राएज है और इसी निज़ाम के कारण दुनिया की सारी दौलत सिर्फ़ कुछ लोगों के हाथों में घूम रही है, मालदार मालदारतर होता जा रहा है और गरीब गरीबतर होता जा रहा है गरीबो का बिल्कुल ख्याल नहीं रखा गया है, सोशलिज़्म और कैटलिज़्म के बीच में इस्लाम ने ज़कात का निज़ाम दिया है जो उचित और इन्सानी तबीयत के अनुसार है, इस्लाम ने न तो इंसान की अपनी कमाई को हुकूमत की दौलत बताया कि सब को उस मे बराबर का हक़ मिले और न इन्सान को अपनी कमाई पर पूरा अधिकार दिया कि वह उस पर साँप की तरह बन कर बैठ जाए । मौलाना मदनी ने कहा कि इस्लाम ने एक फ़ितरी निज़ाम यह दिया है कि इंसान अपनी मेहनत से जो कुछ कमाता है वह उसी की मिलकियत है लेकिन समाज में जो लोग कमज़ोर और गरीब हैं उनको हम नज़र अन्दाज़ न करें, हमारे माल में गरीबो का भी हक़ है इस्लाम ने गरीबो को न तो नज़र अन्दाज़ किया और मालदारो के माल में उन्हें बराबर का हक़दार ठहराया बल्कि मालदारो को हुकम दिया कि वह गरीबो पर खर्च करे इसी को इस्लाम मे ज़कात कहा जाता है ।

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Source: INDIA NEWS CENTRE

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